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Yogeshwari Arya

Abstract Others

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Yogeshwari Arya

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आज, हिन्दी आई मेरे घर

आज, हिन्दी आई मेरे घर

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घंटी बजी 

दरवाजा खोला

तो देखा 

हिंदी आई है।

अपने सुने नैनों से,

एक- टक मुझे

निहारे जा रही है। 

 पूछना चाहता था 

की "कैसी हो हिंदी?" 

लेकिन उसके दशा 

देख मुझे

 दुर्दशा की याद 

 आ गई ।


बिखरे बाल ,

सुनी आंख ,

सूखे होंठ ,

और बेरंग गाल।

 देख कर 

सवाल का निवाला

अंदर ही घोट गया।


 कैसे , किसने ,और क्यों?

बस यही 

प्रश्न चिन्ह 

गले में घूम रहे थे।

 न जाने कौन- सा 

सवाल- ऐ-बम 

जुबा खोलते ही

 बाहर आ जाए।


इसलिए होठों को, 

थोड़ा ऊपर उठाया 

और हल्की- सी ,

मुस्कान से कहा

" कम इन हिंदी ।"

यह सुनते ही

 उसकी सुनी आंखें

 लाल हो गई ,

और फिर गीली हो गई।


 उसने अपना 

दाया हाथ ,

आगे बढ़ाया 

और एक सफेद पर्चा 

थमा के चली गई। 

ना कुछ कहा ,

ना कुछ बोला ,

लेकिन उसके जाते ही

 मन भारी-सा हो गया ।

सवाल-ऐ- सवाल 

मन मे छा-सा गया । 

" किसने की हिंदी की ये दशा? "

सवाल से

 दिमाग घूम- सा गया।


 फिर नजरें दौडी़ 

और सफेद पर्चे 

पर पडी़,

 सोचा आखिर है क्या

ये भला।

 देखा तो एक आमंत्रण पत्र था,

" हिंदी दिवस " का 

अर्थात "हिंदी का जन्मदिन" 

आज था।


 अब

 सवाल का पता नहीं

 पर जवाब-ऐ- बम 

ने मन को तार- तार 

कर दिया।

और सोचने पर 

मजबूर कर दिया ,

"क्या मैं इस दिन को भूल गया ?"


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