बुढ़ापा
बुढ़ापा


यौवन के मद में इतरा रहा था मैं,
यूँ कहो इठला रहा था मैं !
आईने ने सच का अक्स दिखलाया,
तो जान पाया,
यौवन फ़िसल रहा इस तरह,
मुठ्ठी में रेत हो जिस तरह !
आँखें गड़ी की गड़ी रह गयी,
जैसे ही देखा,
सफ़ेद बालों की छड़ी लग गयी,
सोच में पड़ गया बुढ़ापा कैसा होगा,
बैत लेकर हाथ में चलना होगा !
जिनकी ऊँगली पकड़
चलना सिखलाया,
उन्हीं से हर पल डरना होगा !
दास्तानें - किस्से सुनने को,
कोई न अपना होगा !
तकिये पर सर रखकर,
सुबकना होगा !
सिसकने को न कोई कंधा होगा !
जिस मकाँ को घर बना सजाया,
उस घर के कोने में
अपना बिछौना होगा !
होने को तो घर के कोने में
रोशनी होगी,
पर दिल के कोने में
घोर अँधेरा होगा !
गुफ्तगूँ करना चाहेंगे
हम अपनों से तो,
डोकरा सठिया गया
ये सुनना होगा !
मुखिया हैं हम
घर के "शकुन",
मुखाग्नि कब मिले
इसके लिए तरसना होगा !