Zahiruddin Sahil
Drama
मां देख
खिल गया है
बसन्त !
भेज भैया
को, बाबुल
आ के लिवा ले
जाये मुझको !
सुबह
रंग ए वतन
भेज भइया को ब...
आशियाना
अमल
इशारों क...
बुलावा
पैगाम
आँगन
होने से
तुम्हें बहुत कुछ बताना है तुम्हें फिर से जानना है तुम्हें बहुत कुछ बताना है तुम्हें फिर से जानना है
कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ
सारे परिंदे रिहा कर दिए उसने घर आकर। खंजर की क्या मजाल, कि एक ज़ख्म कर सके, सारे परिंदे रिहा कर दिए उसने घर आकर। खंजर की क्या मजाल, कि एक ज़ख्म कर सके,
बात क्या छिपी है इस दिल में कोई बिना कहे ये कैसे जान ले बात क्या छिपी है इस दिल में कोई बिना कहे ये कैसे जान ले
आँचल में है मोह का सागर, दामन में है संसार आँचल में है मोह का सागर, दामन में है संसार
एक ख़तरनाक संकेत है क्योंकि तूफान से पहले आसमां भी, शांत रहता है एक ख़तरनाक संकेत है क्योंकि तूफान से पहले आसमां भी, शांत रहता है
मनाने की बात आई तो मुस्करा दिये मिला कुछ भी नहीं । मनाने की बात आई तो मुस्करा दिये मिला कुछ भी नहीं ।
क्या हैं अब बदलना इस उम्र में रह तू मुझसे और मैं तुझसे खफ़ा। क्या हैं अब बदलना इस उम्र में रह तू मुझसे और मैं तुझसे खफ़ा।
जो किसी छत की मोहताज नहीं, खुले आसमान वाली हो, जो किसी छत की मोहताज नहीं, खुले आसमान वाली हो,
सोचता हूँ के क्या कमी रह गई, क्या जितना था वो काफी नहीं था। सोचता हूँ के क्या कमी रह गई, क्या जितना था वो काफी नहीं था।
अब अपना रास्ता मंज़िल तक पहुंचाऊँ कैसे अब अपना रास्ता मंज़िल तक पहुंचाऊँ कैसे
डूब तो तू भी रही है इस समंदर में, बस तुझे मालूम नहीं है। डूब तो तू भी रही है इस समंदर में, बस तुझे मालूम नहीं है।
सिर्फ निगाहें देख कर इश्क़ की गहराई नाप ले। सिर्फ निगाहें देख कर इश्क़ की गहराई नाप ले।
कुछ ज्यादा ही मांग लिया होगा शायद जो तेरी परछाई भी नहीं है अब साथ। कुछ ज्यादा ही मांग लिया होगा शायद जो तेरी परछाई भी नहीं है अब साथ।
एक बरस के बाद आज फिर, फिर से होली आयी है। फिर से होली आयी है। एक बरस के बाद आज फिर, फिर से होली आयी है। फिर से होली आयी है।
रंग से लिपे पुते हम भी कभी इस महफ़िल की रौनक थे। रंग से लिपे पुते हम भी कभी इस महफ़िल की रौनक थे।
उसके और भी दीवाने थे शहर में मेरे सिवाय...! उसके और भी दीवाने थे शहर में मेरे सिवाय...!
हमें बिन कोई तरस बड़े सरस से होली है, रंग बरसे, रंग बरसे हमें बिन कोई तरस बड़े सरस से होली है, रंग बरसे, रंग बरसे
यह कैसा मोड़ है ज़िन्दगी का उसी की ज़रूरत है, और उसी की कमी है। यह कैसा मोड़ है ज़िन्दगी का उसी की ज़रूरत है, और उसी की कमी है।
शायद माँ अपने अकेलेपन को पहचान गयी है..... कभी वह दीवार की जैसे एक खूँटी बन जाती है.. शायद माँ अपने अकेलेपन को पहचान गयी है..... कभी वह दीवार की जैसे एक खूँटी बन जा...