Zahiruddin Sahil
Drama
मां देख
खिल गया है
बसन्त !
भेज भैया
को, बाबुल
आ के लिवा ले
जाये मुझको !
सुबह
रंग ए वतन
भेज भइया को ब...
आशियाना
अमल
इशारों क...
बुलावा
पैगाम
आँगन
होने से
घर का पूरा बोझ उठाओ सबके मन का खाना पकाओ घर का पूरा बोझ उठाओ सबके मन का खाना पकाओ
मेरे नज़र तुझ से मिली और, प्यार की ज्योत ज़ल गई। मेरे नज़र तुझ से मिली और, प्यार की ज्योत ज़ल गई।
प्यार करने का लेकिन इरादा और नीयत साफ़ थी एक चाहत है तुम्हारे साथ जीने की, प्यार करने का लेकिन इरादा और नीयत साफ़ थी एक चाहत है तुम्हारे साथ जीने की,
लक्ष्य से ना, भटकना है तुम्हें मत बोल के, हम अब, लौट चलें। लक्ष्य से ना, भटकना है तुम्हें मत बोल के, हम अब, लौट चलें।
वो अपना जी पत्थर कर लेते हे, जब सामने तुम्हारी तस्वीर हो। वो अपना जी पत्थर कर लेते हे, जब सामने तुम्हारी तस्वीर हो।
और वहां से जवाब भी आया, कि यहां अब तेरा कोई नहीं रहता। और वहां से जवाब भी आया, कि यहां अब तेरा कोई नहीं रहता।
पहला क़दम चला था मेरी उंगली पकड़कर पल भर में कमबख्त यार मेरा बड़ा हो गया। पहला क़दम चला था मेरी उंगली पकड़कर पल भर में कमबख्त यार मेरा बड़ा हो गया।
सब मर जाता है खुद ही रोज़ होती है मुलाकातें जब सब मर जाता है खुद ही रोज़ होती है मुलाकातें जब
काफी अजीब सा है ये रिश्तों का सिलसिला, काफी अजीब सा है ये रिश्तों का सिलसिला,
रोज़ रोज़ वो ही कुछ चार दीवारें, अब मन को भाती नहीं है रोज़ रोज़ वो ही कुछ चार दीवारें, अब मन को भाती नहीं है
हूँ हैरान में भी ये सब देखकर, जिसे दोस्ती तुम बता रहे हो। हूँ हैरान में भी ये सब देखकर, जिसे दोस्ती तुम बता रहे हो।
मेरे अंदर उफनता इक जुनून है, पागलपन है जो उड़ा कर ले जाते है मुझे हर पल मेरे अंदर उफनता इक जुनून है, पागलपन है जो उड़ा कर ले जाते है मुझे हर पल
फिर उसी मोड़ पर हम मिलेंगे तुम्हें, गर मुमकिन हुआ, गर मुमकिन हुआ। फिर उसी मोड़ पर हम मिलेंगे तुम्हें, गर मुमकिन हुआ, गर मुमकिन हुआ।
सुख दुःख दुनिया जीव अधारा सकल जगत के हो संकट हारा सुख दुःख दुनिया जीव अधारा सकल जगत के हो संकट हारा
फिर उस बात को मैं रेत पर लिखने लगा, फिर उस बात को मैं रेत पर लिखने लगा,
अपनी बंद मुट्ठी में खुद को समेटे चला, भोर की पहली किरण से दो बातें करता, अपनी बंद मुट्ठी में खुद को समेटे चला, भोर की पहली किरण से दो बातें करता,
सदियों से मैं तड़प रहा हूँ, आ के तड़प मेरी दूर करना सदियों से मैं तड़प रहा हूँ, आ के तड़प मेरी दूर करना
तुम हो पहचान मेरी मां हूं तो मैं तुमसे अलग पर तेरी ही छवि हूं मैं मां। तुम हो पहचान मेरी मां हूं तो मैं तुमसे अलग पर तेरी ही छवि हूं मैं मां।
कश्ती मेरी समंदर से बिगड़ा करे हम किनारे पे पहरा दिए जा रहे है कश्ती मेरी समंदर से बिगड़ा करे हम किनारे पे पहरा दिए जा रहे है
पुत्र को पिता पहाड़ जैसे लगने लगता है ।। पुत्र को पिता पहाड़ जैसे लगने लगता है ।।