इशारों को अगर समझो जो -कोरोना
इशारों को अगर समझो जो -कोरोना
मन्दिर-मस्जिद पे क्यों ताला पड़ा है ?
वहाँ का नगीना क्या भीतर जड़ा है?
पहले ...'बहुत' भी ' कम' था!
अब ' कम' भी , ' बहुत' है !!
न हाथ मिलाना, न गले लगाना
रिश्तों के लिए
इससे बड़ी सज़ा क्या होगी ?
जब चाहा, जहाँ चाहा उलझ गए ?
अब
धर्म हो या राजनीति
"अपनी-अपनी चार-दीवारी के भीतर लड़ो !"
ये कैसा सुकून है कि जो बर्दाश्त नहीं हो रहा?
हम तो बहुत चिढ़ते थे शोर-ओ -गुल- ओ भीड़ से ?
मैं तो ढंग से वायरस भी नहीं बोल पाता था
अब डर ये है कि, ये मेरा तकिया-कलाम न बन जाये !
हर एक के खाते में एक मोटी रकम आएगी
"कम से कम इस बहाने महीने साल बीते तो !"
कल रात से कुछ कुत्ते घबरा से गये हैं
उनके जी पे इक दहशत सी तारी है
हुआ कुछ नहीं था बस..
कल मंडी-चौक पे
कुत्तों के इस झुंड ने
"खबरों के चैनल पे कुछ धार्मिक
कुछ राजनीतिक, डिबेट देख ली थी ! "
लगता है कुछ फार्मूले बदल रहा है वो
काली -स्लेट से कुछ सवाल मिटा रहा है
उसूल बदल रहे हैं, दुनिया के बाज़ार के
'सोना' सस्ता, ' रोटी' महँगी हो रही है
दिखावटी मुहब्बत भी उसे अब पसन्द नहीं
अब जनाज़ों को, भीड़ का काँधा नहीं मिलता
नई नस्लों को हैरत होगी सुनकर
कभी क़बिरस्तानों का सन्नाटा था आबादियों में
अकड़ ही निकल गई माटी के इस पुतले की
इशारा हो चुका " साहिल"
'अव्वल ' वही, 'आख़िर' वही !!
वीरान से मंज़र दिखाई पड़ते हैं हर तरफ़
दौलत के चश्मे से भी दुनिया अच्छी दिखाई नहीं पड़ती !
अब तेरी भी क्या तमन्ना ...!अब ज़िन्दगी, है भी कितनी !
अपने -अपने मिज़ाज़ के रंगों की धौंस मत दीजिए !
कैनवास उसका, ब्रश उसका,तस्वीर उसकी
ऐ मेरे रब ! तेरा लाख -लाख शुक्र , के तूने
गुनाहों की तौबा को, 'इतनी सारी' मोहलत दी
मसरूफियत में बहुत कम मयस्सर होता था
अब साहिल से 'साहिल' की बड़ी बात होती है !