भेज भइया को बाबुल
भेज भइया को बाबुल
भैया को बाबुल भेजो ----------------आंसुओं से सिली कुछ
राखियाँ राखियाँ हैं - आ के ले जाये !भैया को बाबुल भेजो !
आने को अब विट नहीं संस्था मेरे नेह मेरे स्नेह को आ के ले जाए भैया को बाबुल भेजो !
इक बचपन भूले से अपने साथ ले आई थी वो छोड़ के रखा गया है आ के ले जाए भैया को बाबुल भेजो !
काम में अचानक भीगने लगती हैं आँखें आ के इन पर अपने लाडले का बाँध लगा जाये
भेज भैया को बाबुल !!
मंझली बहन----------मंझली बहन !
मैंने खुद ही अपनी कलाई पर तारे रेशम की डोरी बांध ली है!
तेरे हाथों का एहसास करके -मैं काजू की मिठाई भी खा ली है!!
...इस बार तुम.. अपने मायके वापस नहीं लौटोगी
कुछ बरसों तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखा
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चिट्ठियों के दौर में कभी-कभी ख़त आ जाता था तुम्हारा कुछ बरसों से कॉल भी नहीं आया
....वो एक त्यौहार ..जो सिर्फ मेरी और शादी की खुशी थी तुम तो नहीं आईं !.
पर देखो ये त्योहार फिर पलट के आया..ये
आओ न मेरी बहन !..देखो ! रक्षा बंधन साथ अपने सावन लाया है आओ झूले पे पींग बढ़ाएं दीदी !...
ओ . मेरी बहन!!"
नहीं दोस्त !.. मुझे मालूम है कि तुम नहीं लौटोगी कुछ बरस पहले
इसी त्यौहार पर तुम पर केरोसिन का तेल जला के मारा गया था !!!!
तुम वापस लौटी थीं अस्पताल से घर मगर... मृत..!!!
रेशम के झुलसे हुए धागों की तरह !
इक मैं ही तो अकेला अकेला नहीं !सैकड़ों बहनें यूँ ही ज़िंदा जल जाती हैं
सैकड़ों कलाइयाँ मेरे जैसी "सूनी" रह जाती हैं !!