बुझती मशाल।
बुझती मशाल।
हर तरफ रिश्तों के जाल है
सब चेहरे आज बेहाल है।
किसी की पकड़ में कुछ नहीं
फिर भी हाथों में बुझती मशाल है।
सब चाहते है परिवर्तन
और ये परिवर्तन का आकाल है
समझ बुझ सब खो चुकी है
और सब नियत से कंगाल है।
अर्थशास्त्री बड़े बड़े आ गए
पर अब देश तो फटे हाल है
ये तो जनता से गुज़ारिश कर रहे है
खरीदोगे बस ये सवाल है।