बुद्धू बक्सा
बुद्धू बक्सा
देखों ये कैसा नज़ारा दिख रहा है
आज के जमाने में क्या क्या दिख रहा है
ज़माने में जो दिखाया करता था असलियत
अब उसी असलियत को खुद ठुकरा रहा है
लगाकर पैबंद झूठी शान-ओ-शौकत का
गरीबी के मन को यह ललचा रहा है
अतरंग रिश्तों की सरेआम करके नुमाइश
लोगों के अंदर छुपे दानव को यह जगा रहा है
परछाई था जो कभी आम जिंदगी के लोगों का
आज खास लोगों की जिंदगी को सिरमौर बना रहा है
कभी जो जगाता था एक अलख इस दिल मे
आज बदले की भावना को यूं भड़का रहा है
कभी जो लौटा देता था जवानी में बचपन
आज बचपन मे जवानी यह जगा रहा है
कर देता था महफ़िल जो घर के सूने आंगन को
आज घर-घर का कोना सूना बना रहा है
बना देता था जो रिश्ते अदद अजनबियों से
आज अपने रिश्तों को अजनबी बना रहा है
ज़माने में जिसे कहा जाता था बुद्धू बक्सा
आज हम सब यह बुद्धू बना रहा है!