बुढ़ापा बना मुस्कान
बुढ़ापा बना मुस्कान
बुढ़ापा बना मुस्कान मेरी जिंदगी का
मैं खुशियाँ समेट रहा हूँ,
जिदंगी के हसीन पलों को मैं ख़ूबसूरत इंतजाम कर रहा हूँ ।
कुछ पत्ते शाखों पर अब भी
जवान हो हवाओं में उड रहे हैं,
उम्र ए रफ्ता की बची हुई शामो को खुद से खुद में खो मज़े कर रहा हूँ ।
दर्द है बहुत दिल में मेरे पर जिदंगी इतनी उदास भी नहीं हैं मेरी,
खुदा की बंदगी में वक्त गुजार हर लम्हा नई ग़ज़ल लिख रहा हूँ ।
उम्र की कर ऐसी तैसी कर सारी चिंताएँ को आसमान की खूँटी पर टांग,
खुलकर हंसते हुए मीठी मीठी मुस्कान बिखेर आनन्दित हो रहा हूँ ।
सफ़र छूटता जा रहा है वक्त की सूइयों संग ढलता जा रहा है,
रेत सी फिसलती जिदंगी को ज़िंदादिली से मुस्कराते हुए जी रहा हूँ ।।