बसंत और बहार
बसंत और बहार
बसंत और बहार दोनों का अटूट है नाता,
बसंत आता अपने साथ बहार भी बुलाता,
जब दोनों का अद्भुत प्रेम मिलन हो जाता,
युगल प्रेमी जीवन तन यौवन रस मधुर पाता,
बीते हुए यादों की कलियाँ महक जाती है,
उपवन में फूलों की कलियाँ खिल जाती है,
हरित धरा सज जाती हरियाली छा जाती है,
साज सजे चहूँ ओर बसंती हवा चल जाती है,
बसंत जब मिलता बहार से सृष्टि सज जाती है,
डाल-डाल पर भँवरे गुंजन करते दिखाई देते हैं,
रुनझुन -रुनझुन पायल बजे प्रेमिका की जब
पुनर्मिलन के सुरीले राग कहीं सुनाई देते हैं
साज सजकर वन उपवन लहराता पल -पल,
पुष्प मधुर इठलाता और राग सुनाता हर -पल,
लजाती और सकुचाती कली गुनगुन करते भौरें,
अमुवा की भीनी बौरों से मीठा संगीत सुनाते हैं I
