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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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बस तुमसे ही काम

बस तुमसे ही काम

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व्यभिचारी को चाम प्रिय,

 लोभी चाहे दाम।

पर जगदीश्वर है मुझे,

बस तुमसे ही काम ॥


तुमसे ही है काम तुम्हारा,

प्रतिक्षण ध्यान धरूँगा।

मन से सब पाखण्ड दम्भ,

को निश्चय दूर करूँगा।।


तन का दीपक बना ज्योति,

मैं मनकी सदा जलाऊँ।

तुम मिलो ना मिलो राम मुझे,

मैं तुमको नित्य रिझाऊँ।।


करूँ तिम्हारा भजन सदा,

नयनों में तुम्हें बसाऊँ।

रहो सर्वदा साथ हमारे,

मैं नित दर्शन पाऊँ।।


अधम से अधम जनों पर,

हे प्रभु तुमने दया दिखाई ।

मेरी बार आने पर भगवन,

तुम काहे को देर लगाई ।।


मैं पास तुम्हारे आता हूँ,

तुम मुझसे दूर हि जाते हो।

क्या खता हमारी है मुझको,

जो तुम इतना तड़‌पाते हो।।


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