आदत
आदत
डर लगता है
कहीं दुनिया की चमक से
चौंधिया न जाएं
आंखें।
आंखे जिससे सच
को देखने की आदत है मुझे।
डर लगता है
कहीं दुनिया की प्रसंशा से
गुम न हो जाये
जुबां।
जुबां जिससे सच
को बताने की आदत है मुझे ।
डर लगता है
कहीं अंधी प्रतिस्पर्धा में
उग न आये
घृणा।
घृणा जिससे सच
को बचाने की आदत है मुझे।
हे ईश्वर करूं
प्रार्थना यही हरपल
कर्तव्य पथ पर रखना मुझे,
तुम साक्षी रहो मेरे
जिससे सच की आदत रहे मुझे।