बरसात की एक रात में
बरसात की एक रात में
काली बरसात की एक रात में
हम सब लोग बैठें थे साथ में,
लालटेन ज्वल रहा था बीच पर
कड़क रही थी बिजली कड़कड़।
दादाजी बोल रहे थे कहानी एक
बिषय था उनका भूत ओर प्रेत,
डर लग रहा था हमे जम कर
फिर भी बैठे थे दिल थाम कर।
अचानक आयी एक आवाज
हमने सोचा भूत का फरियाद,
डरके के मारे सिमट गये हम
सोचा सब हो जायेगा खतम।
ऐसे में अंदर आयी मा हमारी
कहा नही है ये डरने की बारी,
था बस वो एक हवा का झोंका
जिसने दिया हमे है ऐसा चौंका।
भूत प्रेत जैसा असल में कुछ नही होता
ये बस है हमारा अपना डर मन में बैठा।
