ब्रह्मांड की महाशक्ति
ब्रह्मांड की महाशक्ति
🌌 ब्रह्मांड की महाशक्ति 🌌
(खगोल-वैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्तुति)
✍️ श्री हरि
🗓️ 21.8.2025
असीम शून्य में झिलमिलाते अनगिनत तारागण,
मानो विराट वेदपंक्ति के श्लोक उज्ज्वलित हों।
अनंत आकाश का विस्तार—
मात्र दृष्टि की सीमा से परे,
जहाँ छिपे हैं असंख्य सौर-मंडल,
जिनकी गणना विज्ञान भी अब तक न कर पाया।
हजारों आकाशगंगाएँ चमकतीं वहाँ,
जहाँ समय भी मौन है
और प्रकाश भी शिष्य।
निहारिकाओं की धमनियों में
बहती है
ऊर्जा की अदृश्य धारा,
कण-कण में स्पंदित है
वह आद्य शक्ति—
जो हिग्स क्षेत्र में द्रव्य को अर्थ देती,
और गुरुत्व तरंगों में नृत्य करती
जैसे शिव का तांडव।
क्वांटम की गहराइयों में
अव्यक्त लहरेंऔर संभावनाएँ,
ब्लैक होल के गर्भ में
समाहित समय का समापन—
सब एक ही सूत्र से बँधे हैं:
ब्रह्मांड की महाशक्ति।
वह शक्ति—
जिसे ऋषियों ने "प्राण" कहा,
श्रुतियों ने "ॐकार"
विज्ञान ने "ऊर्जा"
और अध्यात्म ने "ब्रह्म"
कभी यह प्रकाश बनकर दौड़ती है
3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड,
तो कभी मौन अंधकार में छिपकर
डार्क मैटर की चादर ओढ़ लेती है।
धूमकेतुओं की लकीरों से लेकर
सुपरनोवा के विस्फोट तक,
ग्रहों की कक्षाओं से लेकर
मानव की धड़कनों तक—
सब उसी अदृश्य सत्ता के खेल हैं।
हे ब्रह्मांड की महाशक्ति!
तू ही आदि है,
तू ही अंत,
तू ही वैज्ञानिक समीकरणों का रहस्य,
और उपनिषदों का मौन मंत्र।
तू ही परमाणु के केंद्र में स्थित नाभिक,
और तू ही ध्यानस्थ योगी की
आँखों में चमकता प्रकाश।
विस्तृत आकाशगंगा का यह नृत्य
तेरे ही अंकन की लिपि है।
हम—मात्र धूलकण,
तेरी अनंतता में बहते हुए।
पर जब भी तेरी झलक पा लेते हैं,
तो अनुभव करते हैं—
मानव ही नहीं,
सम्पूर्ण ब्रह्मांड
तेरी ही संतान है।
जिसे विद्वज्जन "परमात्मा" कहते हैं।
ॐ तत्सत्। 🌌
