कोशिश
कोशिश
मैं जब भी कुछ
बढ़िया और अलग सोचती हूँ
मन होता है
उसे कागज़ पर उतारुँ
कहानी, कविता, निबन्ध,
लेख, मन के भाव या फिर
कोई भूली बिसरी यादों के रुप में
लोगों के सम्मुख पेश करुँ।
अगले ही क्षण
मन में विचार उठता है
जब से मानव पैदा हुआ है
भाषा विकसित हुई है
सोचा जा रहा है
इतने विचारक व दार्शनिक
पैदा हो चुके हैं
सैंकड़ों लेखक लिख चुके हैं
हजारों वक्ता भाषण दे चुके हैं
पुस्तकालय भरे पड़े हैं
लाखों पुस्तकें बाज़ार में उपलब्ध है।
हर विषय पर ढेरों सामग्री मिलती है
गूगल पर तो कोई ठिकाना ही नहीं।
मैं क्या नया लिख सकती हूं
क्या नया सोच सकती हूं
कापी पेन उठा कर रख देती हूं।
फिर कभी मन में उबाल उठता है
लिखने बैठ जाती हूं
यह सोच कर
शायद सरस्वती की मेहर हो जाए
मेरी कलम से कुछ
नायाब चीज़ ही निकल आए।
बच्चे तो सभी पैदा करते हैं
और सन्तुष्टि तो
अपने बच्चों से ही होती है।
