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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Classics

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Classics

सब्र

सब्र

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सब्र का क्या इंतिहान वाजिब है 

गर्ज का क्या ये मुकाम वाजिब है 


देखकर भी गर तड़प जाओगे तुम 

 मिलना क्या तुमसे कभी वाजिब है !


मान लिय़ा है तुमने कि सब हो 

ठान लिय़ा है तुमने कि रब हो 


वक़्त का सितम तुमने नहीं देखा है 

आयेगा जो, बोलोगे गजब हो !


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