तुम
तुम
1 min
191
बसे हो तुम
नैनों में स्मृति बनकर
पुकारते हो तुम
अधरों का स्वर बनकर
मिलते हो तुम
श्वासों में स्पंदन बनकर
बहते हो तुम
नस नस में लहू बनकर
मिलते हो तुम
हृदय का प्रेम बनकर
क्योंकि तुम ही तो हो
मेरी जीने की एक वजह।