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Aarti Sirsat

Abstract Classics Inspirational

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Aarti Sirsat

Abstract Classics Inspirational

क्या कभी देखा है

क्या कभी देखा है

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क्या कभी देखा है

देखी होंगी अपनी परछाई 

चाँद की रोशनी में !

क्या कभी तुमनें उस 

चाँद की परछाई को देखा है !


तन के भीतर है 

जो रूह!

क्या कभी तुमनें उसे 

बिन तन के देखा है!!


देखा होगा हजारों दफ़ा 

तारों को आसमां से टूटते हुएँ!

क्या कभी तुमनें हाथों से 

उस तारें को तोड़कर देखा है!!


मड़राते है फूलों के चारों तरफ़ 

भँवरे और मधुमक्खियाँ भी!

क्या कभी तुमनें भँवरों को 

शहद बनाते देखा है!!


किया होगा अपनी 

साँसों में महसूस!

क्या कभी तुमनें उस हवा को 

अपनी आँखों से देखा है!!


बेबस होकर रो पड़ता है अम्बर 

उस धरा की प्यास बूझाने के लिए!

क्या कभी तुमनें धरती को

रोते हुए अम्बर के लिए देखा है।


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