बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़
बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़
बहता पसीना सुबह से है ढेर,
बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़।
प्रकृति का सामंजस्य किया है रब ने,
जल, हवा बनाई इंसान के संग में।
पेड़ हो हरे तो धरा पे हरियाली है,
हवा भी झूमती, चलती मतवाली है;
झूमकर हवाएँ, पहाड़ों से टकराएँ
उमड़-घुमड़ फिर काली घटाएँ छाएँ।
पड़े कैसे फुहारें जो सूखे हों पेड़
बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़।
ऊँची इमारतों का चला जब से जोर
चलाई कुल्हाड़ी पेड़ों पर तड़तोड़,
ईंट गारा लगा, दीवारें खड़ी हो गईं
पेड़ चले गए हवाएँ जैसे खो गईं,
बिजली नहीं तो न गर्मी में खैर
बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़।
देखो समझो होश में आओ
पर्यावरण अपना बचाओ,
वृक्षारोपण की लगाते हुये टेर
बढ़ रही गर्मी, कट रहे पेड़।