बोलते लब
बोलते लब
चूम लेने को
तुम्हारे बोलते लब
मैंने कितनी रातें जागी हैं
जाने क्या-क्या ख़्वाब सजाए हैं
इन बोलते लबों ने
मुझे हमेशा हैरान किया है
मैं हमेशा इनको चूमना चाहता था
छूना चाहता था
इन्हें अपने होठों से
और कुछ पल के लिए ही सही
इनकी थरथराहट को
शांत और गम्भीर कर देना चाहता था
यह बोलते लब तुम्हारे
मुझे अक़्सर उकसाते थे
मुझे अपने से लगते थे
इसीलिए मैं भी इन्हें
अपनाहत के नाते
अपने आगोश में
भर लेने को आतुर हूँ
यह बोलते लब
मुझे अधीर कर रहे हैं
यह बोलते लब
मुझे फ़क़ीर कर रहे हैं
अब इनकी ही दौलत से
भरेगी मेरे दामन की खाली झोली।

