बनारस
बनारस
गूंजती पुकार
मंत्रों में लीन
डूबे अहंकार
लहरों में मलीन।
तेज़ शंख
चीरती हुंकार
धुंध और धुआं
देखें चक्षु सर्वत्र
भीड़ से घिरे
मन का खाली संसार।
माथे पे तिलक
नमन करे हस्त
झुके आशीष
अलौकिक का सम्मान
निष्फल प्रार्थना
सर्वस्व स्वीकार।
अंतर्मन के द्वंद अनंत
रोज़ का रोष
अंदर व बाहर
ढूंढे क्या इस पार उस पार
क्या जीवन का सार।
लंबी यात्रा कर
पहुँच जाएं इक दिवस
कभी देने और कभी लेने
अपना अंतिम पुरुस्कार।
