बिसरी पाती
बिसरी पाती
नहीं आएगी अब कभी भी वो पाती
बाबुल ने जो भेजी थी
कैसे समझाऊँ बिलखते मन को
अब बाबुल जा बसे परदेस
कौन पूछे हाल मेरा कौन जाने दर्द
खुद में सिमट कर रह गई
अब मेरे दिन रैन
टीस सी उठती जब तब मन में
हुक है करती घायल मुझको
बाबुल तुम अब लौट भी आओ
भर लो बाहों के घेरे में
भर दो मुझको रीती हूँ मैं
स्नेह की छाँव में रख लो मुझको
बाबुल इक पतिया लिख दो
जिसमें आशीर्वचन भर दो
आ जाओ तुम लौट के बाबुल
मुनिया तेरी रोती है ....।।
