बिजली से कौंधते दृश्य
बिजली से कौंधते दृश्य
एक बुरा ख़्वाब
लाल-लाल खुनी आकाश
घनी काली रात
न चाँद न तारे न जुगनू न दीपक
मैं
बैठा देखता
बिजली से कौंधते दृश्य
एक
भ्रष्ट अपराधी नेता
दोबारा चुनाव जीतकर
शपथ लेता
एक व्यभिचारी साधू
संदेह का लाभ ले कोर्ट से बरी हो
आश्रम में प्रवेश करता
एक अफ़सर
कर्तव्य की रिश्वत लेता
एक बहू जलाने वाले पति ससुर
कोर्ट से जमानत पाकर
बहु के परिवार को धमका
समझौते के लिए विवश करते
रिक्शा चलाता एक शिक्षित युवक
कूड़ा बीनते और ढाबों पे बर्तन माँजते
छोटे छोटे बच्चे
उफ़ ये कितना बुरा ख़्वाब है
उफ़ काश ये वाकई ख़्वाब होता
पर
ये तो मेरे देश की हकीक़त है...
