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Madhu Gupta "अपराजिता"

Classics Fantasy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Classics Fantasy

बीत गया ये साल भी

बीत गया ये साल भी

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बीत गया यह साल भी 

गुजर गए वो लम्हें भी

कुछ शाद थे कुछ नाशाद से

कितनों ने क्या-क्या सहा यहाँ

कितनों ने क्या-क्या खोया अपना


कितनों के दर्द हृदय से भरे पड़े

कहीं युद्ध हुए कहीं मार काट 

कितनों ने जाने गवायी अपनी

ना जाने अनाथ हुए कितने बच्चे

कितने घर से बेघर भी हुए,

कुछ पल खुशियों के भी थे बीते


कहीं खेलों ने किया मनोरंजन भरपूर

तो कुछ अंतरराष्ट्रीय मंच सजे

कुछ देश के हित में हुए निर्णय

तो कुछ के समाधान ना निकल सके

लेकिन जाते जाते ये साल हमें

आशा की किरण बन, 


साल नया देता ही यह गया

नयी उम्मीद नयी आस जगा

उत्साह नया भर के सबके मन में 

हो कर थोड़ा उदास ये

जाने को अब तैयार हुआ..!


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