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Tej prakash pandey

Classics Inspirational

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Tej prakash pandey

Classics Inspirational

पुरुषत्व की भावना

पुरुषत्व की भावना

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अंतरमन की भीषण ज्वाला,

कितने अश्रु पिया वह होगा।

गरज गरज कर कभी निशा में,

खुल कर तो वर्षा ही होगा।


रातो रातो सोये जागे,

कितने सपने बुनता होगा।

कितना ताप बढ़ा होगा जब,

अंतरमन को पाया होगा।


टीश उठी होगी सीने में,

छुप छुपकर वह भी रोया होगा।

आखिर कुछ तो खोया होगा,

ऐसे न पुरुष फिर रोया होगा।


प्रेम कभी सम्मान कभी या,

निज सपनों को खोया होगा।

दबा अशीम वेदना दावानल,

चुपचाप कहीं फिर सोया होगा।


युग युग में अटल परीक्षा पल -पल

जब वह देता आया होगा।

सीता को कभी राधा को,

सती को शिव ने खोया होगा,


त्यागो को बलिदानो को,

हंस हंस कर गले लगाया होगा।

अधरो में वंशी रखने वाला,

तब गीता ज्ञान सुनाया होगा।


भाव ह्दय के सहज जो उमड़े,

उनको भी दफ़नाया होगा।

प्यासा प्यासा पास कुयें के,

उल्टे पांव वह लौटा होगा।


पुरुषत्व के इस जामे में,

निर्मल मन झुंझलाया होगा।

कितना ताप बढा होगा,

जब अंतरमन को पाया होगा।


जंगल जंगल भटका होगा,

मर्यादा की ओढ़े चादर।

अपनो के षडयंत्र छलो से,

भला कहाँ बच पाया होगा।


प्रेम के खातिर उसने भी,.

जड चेतन को झकझोरा होगा।

सिया विरह में विलखा होगा,

सागर को तब लांघा होगा।


भीडो मे या एकांतो मे,

जब भी वह फ़िर खोया होगा।

भीतर भीतर से उसको जब,

अंतरमन झकझोरा होगा।


भरी जवानी में उसने जब,

सपने अपने खोया होगा।

कितना ताप बढ़ा होगा जब,

अंतरमन को पाया होगा।


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