रघुपति भवन
रघुपति भवन
धरम की रक्षा कर, धरम ही पाय चल,
कृत कार्य से ही तुम उसको ही पात है।
जाहि ऐसा ना करत, ताहि पे संकट आत ,
कर्तव्य निर्वहन मे सुस्त पड़ जात है।।
करम ही धरम है, मूल जीवन का सार,
गीता सार यही कह ऐसा ही विधान है।
आचरण नेक रख, पर व्यथित न कर,
ईष्ट गोहराई चल सबका भलाई है।।
राम कह कृष्ण कह, जय जीनेन्द्र ही कह,
परम की बात कह रहीम शरण जा।
जाहि प्रति निष्ठा रख,ताहि प्रति मन देय
सत सत कर चल असत से दूर जा।।
धरम ही पथ देत, धरम ही ज्ञान देत,
आचरण प्रेरक ही जगत प्रसिद्ध है।
धम्मम शरण गच्छ, कर्तव्य निर्वाह कर,
तत से ही धरम का रक्षा वही होत है।।
अधम विरत चल, सुधम निकट आय,
करत चलत जन हृदय भावत है।
सबही समान लख, मन रूची शुचि रख,
करम महान मान हिय भाव हित है।।
