तन्हाई
तन्हाई
रात की तन्हाई में जब दुनिया बेसुध सोती है
ममता के मारे बूढ़े दम्पति की आंखें रोती हैं
भावनात्मक जुड़ाव न होने से तन्हाई बढ़ रही
एकाकी डिजिटल दुनिया में भावना घुट रहीं
तन्हाई में बीते लम्हे तन-मन-आत्मा बेध रहे
अतीत के वो दिन टीस दे-दे दिल को छेद रहे
गले लगने की पलभर की खुशी याद आ रही
अंक में न भर पाने का बोध तन्हाई बढ़ा रही
ये न संभलने वाली तन्हाई जीवन तोड़ देती है
जीते जी इंसान को कर मृत राह मोड़ देती है
क्यों न तन्हाई को आत्मिक चिन्तन में रोप दें
सांसारिक मोह से हटाके मन, ईश से जोड़ दें।
