STORYMIRROR

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics Inspirational

4  

Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics Inspirational

तन्हाई

तन्हाई

1 min
14

रात की तन्हाई में जब दुनिया बेसुध सोती है 

ममता के मारे बूढ़े दम्पति की आंखें रोती हैं

भावनात्मक जुड़ाव न होने से तन्हाई बढ़ रही

एकाकी डिजिटल दुनिया में भावना घुट रहीं 


तन्हाई में बीते लम्हे तन-मन-आत्मा बेध रहे 

अतीत के वो दिन टीस दे-दे दिल को छेद रहे 

गले लगने की पलभर की खुशी याद आ रही 

अंक में न भर पाने का बोध तन्हाई बढ़ा रही 


ये न संभलने वाली तन्हाई जीवन तोड़ देती है

जीते जी इंसान को कर मृत राह मोड़ देती है

क्यों न तन्हाई को आत्मिक चिन्तन में रोप दें 

सांसारिक मोह से हटाके मन, ईश से जोड़ दें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract