भूख़ी आत्मा
भूख़ी आत्मा
ज़िंदगी को भी तो हमसे यूँ गिला हो जैसे
दर्द उसको भी मोहब्बत में मिला हो जैसे।
देख ले मेरा भी कोई मुक़द्दर यहाँ पे
यार के प्यार की अब कोई दुआ हो जैसे।
मर गया वो पतंगा भी तो इश्क़ में ही
अब महोब्बत से ही होती है नफ़ा हो जैसे।
भूख़ी आत्मा को तो कुछ भी न दिखाई देता
वास्ता उसका है रोटी से ज़िया हो जैसे।
दर्द को हमने ही अपने गले में बाँधा है
ज़िंदगी कोई यहाँ पे है सज़ा हो जैसे।।

