भूख
भूख
भूख में भोजन मिल जाये,
कितना स्वादिष्ट लगता है।
सूखी रोटी का निवाला,
गार्लिक नान लगता है।
भूख में ही भोजन का,
महत्व समझ आता है।
वर्ना तो छप्पन भोग भी,
देखने का मन नहीं करता है।
जब तक मॉं थी भूख क्या थी,
कभी अनुभव ही नहीं हुआ।
भूख लगने से पहले,
भोजन परोस देती थी।
भूख भी ज़रूरी है,
श्रम करने के लिये।
मेहनत का फल खाने में,
उत्साह में जीवन जीने में।