भुला
भुला
मत भटको तुम राहों से अपनी
रहो उस पर तुम सदा ही अडिग
भटक गए जो भूल से तो पुनः
दौड़ो हो कर रोड़ों से अनभिज्ञ
पश्चाताप करने से भी जो न मिटे
इतना बड़ा तो कोई भी पाप नहीं
जीवन में कोई कभी भी न गिरे
ऐसा तो कोई भी मैं या आप नहीं
भूल सुधार का जो मन में भाव रखे
चिंतन मनन अन्तर्दर्शन विचार करे
कारण हार विशलेषण बारंबार करे
सफलता का वो निश्चित स्वाद चखे
गलती का पुतला, मानव यूँ ही नहीं
इसकी प्रकृति का ये मूल स्वभाव है
बिन सोचे आता इसे अकारण ताव है
पछतावा भरे खाई सारी घाव ही नही
दिल दुखाया हो किसी का जानबूझ कर
नमक लगाया हो जख्मों पे जो रगड़कर
या फिर बुरा चाहा हो जो सोच समझकर
मांग लो माफी सच्चे मन से हाथ जोड़कर
सुबह का भुला शाम को आ जाए लौटकर
माफ़ हों सब गलती उसकी दिल बड़ा कर
खड़ा द्वार आत्मग्लानी से पलक झुकाकर
स्वागत उसका हो खुले मन बाँह फैलाकर।