भटकाता मन
भटकाता मन
कभी मन भटकता है,
कभी मन भटकाता है,
जाने क्या - क्या सिखा जाता है,
जाने क्या - क्या बना जाता है,
मन भयंकर जुआरी है,
कभी स्वयं हारता है,
कभी स्वयं को जीता हुआ समझता है,
मन बड़ा ही चंचल है,
मन बिल्कुल चंद्र है,
कभी घटता कभी बढ़ता ही रहता है,
कभी मन मोह लेता है,
कभी मन मोह लिया जाता है,
मन ही तो सात तालों में कहां बंद रह पाता है।
