भोग मुक्त इश्क
भोग मुक्त इश्क


तन की हकीकत
नापी है तूने मेरी शब भर,
मन तक पहुँच पाते तो
क्या बात थी..!
तन की आबरू की बिसात
अनमोल मेरी
बस तन से इश्क जोड़ा तूने
मन की खिड़की से झाँकते..!
मन मंदिर सा पाक ना
दहलीज़ लाँघी तूने
जिस्म का जश्न मनाते रहे..!
भय मुक्त से तुम मुझमें रहते हो
लहू की रवानी में
फिर भी मेरी रूह
तक का तुम्हारा
सफ़र फासलो में रहा..!
तन की पूजा से परे मेरी
और एक नज़र भर देखना
तुम्हारे लिए बहुत
दूर की बात है ना ?
तन पिपासा त्यज कर
कभी मन में
बसकर देखो जिस मंदिर के
आराध्य तुम हो
मुझे नतमस्तक सी
पूर्णतः समर्पित पाओगे..!
भोग मुक्त इश्क की परिभाषा
स्पर्श से परे स्पंदनों में
सिमटकर तुम्हारी
आगोश में भी रहूँ मैं अनछुई...।