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ashish singh

Others Romance

0.6  

ashish singh

Others Romance

अधूरापन

अधूरापन

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वो ख्वाब पुराने मुरझाए है,

सूना -अंधेरा मेरा मन।

जैसे पतझड़ मे फैली रेत पर,

सूखे पत्तों का पीला रंग।


आशाएँ है आकाश से,

बारिश की ठंड फुहारों का,

काल कोठरी मे दीप -ज्योति के,

उज्ज्वल अविरल भंडारो का।


छन से टूटे शीशे जैसे,

फैले हो जमीन पर।

हर एक कदम पर लहू,

निकलने बैठे हो बन शालीन कर।


अर्थ व्यर्थ, शक्ति असमर्थ,

अब गिरा हुआ है, मन ठहरा है।

विस्मित पग पग , गिरता जाता खग,

अंचल मे अब बस कोहरा है।


एक अंश तुम्हारा मुझमे जो,

रह सा गया है, रोता है।

तुम्हारे मन से जुड़ने के कितने,

सपने संजोता है, फिर रोता है।


व्याकुल संसार की चकाचौंध मे,

हृदय को कोई रास नहीं।

तुम पास तो हो पर साथ नहीं,

इस बात का मुझे आभास नहीं।


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