सावन
सावन
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आई घटा, छाई घटा,
घिर-घिर आये बदरा,
बरसेंगी, काली घटा,
अबकी तोरे अंगना।
मोरे अंगना में
छाई है बहार
सावन की।
बिखर गए
चंहु ओर
नेह के बादल
बन बरसे घटा घनघोर
सावन में।
मै तो मुर्झाए
फूलों की
रंगत बनी,
मैं तो फैली
सुगन्धों का
कण-कण बनी,
जब घटा से गिरी
तो मै बरखा बनी,
बरखा बनके जो
बरसी फुहार
सावन में।
जाने क्यूं लगायी मैंने
हाथों में मेंहदी,
जाने क्यूं लगाया मैंने
बालों में गजरा,
अंखियों में सोहा
कजरा....कजरा,
तेरे आने का
है इन्तजार
सावन में।

