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सोचता हूँ तुम्हे रात-दिन मैं

सोचता हूँ तुम्हे रात-दिन मैं

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कुछ तो कहदो मुझे एक बार,

मैं तो कुछ भी ना कह पाऊ,

ऐसे भी तो जी ही रहा हूँ,

बोलके कहीं तुम्हे खो ना जाऊ।


पहले जब हम मिला करते थे,

साथ बैठ चाय पिया करते थे,

कास कि तभी बोल दिया होता,

तो आज तुझे खोने का भय ना होता।


आज आके भी दूर ऐसा लगता है,

जैसे तूही मुझे यहां-वहां दिखता है,

कास अभी भी हिम्मत करके कह दू,

डर है कि तुम्हे मै यूही ना खो दू।


जब भी में कोई और लड़की को देखूँ,

उसमे तेरी ही खूबी में खोजूँ,

अच्छा होगा कि बोल ही दूँ आज में,

बोलके कहीं फिर में कहीं ये दोस्ती ना खो दूँ।


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