सफर जिंदगी का
सफर जिंदगी का
चलते-चलते इस,
रास्ते पर आ गये कि,
पता ही नहीं चला,
कहाँ आ गये।
रास्ते अंजान से,
अब लगने लगे,
लोगों को देख,
खुद संभलने लगे।
ना जाने कब तक,
ये गुमनाम रास्ता चलेगा,
अपनो को छोड़,
अब हम बिखरने लगे।
दौंड में भागते-भागते,
ये कहाँ आ गयें हैं हम,
पीछे देखा तो सारे,
अपने बिछड़ से गये।
अब तो लगता है,
वापस ही चलो,
अपनों से मिलकर,
पहले जैसे ही जिये।
अगर ऐसा ही,
चलता रहा ऐ जिंदगी,
ना अपना पता होगा,
और ना ही रास्ते का।
अभी भी वक्त है,
कुछ कर गुजरने का,
अपनी दुनिया में,
वापस जाकर सँवरने का।
परिवार मिला तो,
दुनिया ही मिल जायेगी,
दुनिया के पीछे,
जाने से परिवार छूट जायेगा।
वक्त रहते ही,
मोड़ दूँ अपने रास्ते,
दुनिया को छोड़,
अपने परिवार के वास्ते।