बिटिया
बिटिया
बिटिया हमारी
हो गई बड़ी ,
जिम्मेदारियों को
निभाने की
लगा दी है लड़ी....
जन्मी थी तब ,
कृष्ण का रूप थी,
तरह - तरह की
अठखेलियाॅं करती थी ।
उस वक्त चंचलता
बहुत निराली और
प्रश्नात्मक थी ,
आंखें हर समय कुछ
खोजती रहती थी।
बिटिया हमारी
हो गई है बड़ी।
चलने की प्रक्रिया में तो
ऐसा लगा जैसे पहले
पांव से दुर्गा ने, दूसरे पांव से
लक्ष्मी ने पदार्पण किया हो।
और पांव - पांव करके
चलने लगी विद्यालय के
प्रांगण में, चलने लगी
उंगलियां काँपी के पन्नों पर ...
तो सरस्वती का पदार्पण
होना ही था ।
तीनों देवियों का रूप
लिए मेरी बिटिया हो
गई बड़ी ....
कभी हम हुआ
करते थे ---
उसके संरक्षक ,
आज ..वो ..
हो गई है ....
बिटिया हमारी
हो गई बड़ी ।
चौबीसों घंटे रखना
' हमारा ' ख्याल ,
उसके सिलेबस का
चैप्टर बन गया है।
लैपटॉप पर ,
उंगलियां चलाते हुए ,
नज़रें हमारी खाने की,
प्लेटों पर घुमाते हुए,
कि.....
कहीं , कोई ,
स्वास्थ्य वर्जित व्यंजन
तो .. नहीं है पड़ी ।
बिटिया हमारी
हो गई बड़ी ।
कहना है ,उसका--
जितना खटना था ,
खट ली ,
अब तो चिल करो....
अब समय है ,
अपने शौक़
पूरे करने का ---
जीने का अंदाज
हमें बताती है .....
बिटिया हमारी
हो गई बड़ी ।
हमारी दिनचर्या ख़ुद,
तय कर जाती है ...
चिंता हमारी उसे
दिन - रात सताती है ।
जिंदगी के हर पहलुओं को
अपने नजरिए से देख
उनका हल चुटकी में
कर जाती है।
बिटिया हमारी
हो गई है बड़ी ।
हर कठिन परिस्थितियों
अपने हॅंसती , मुस्कुराती,
हमें खुश रहना
सिखाती है।
जरूरत पड़ने पर
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती से
निकल काली का रूप
भी धर लेती है।
बिटिया हमारी
हो गई है बड़ी।
छोटी होकर
बड़े भैया की
दीदी बन
बैठी है।
उनकी समस्याओं को
सुलझाने का ,
चमत्कारी नुस्खा
उसे बतलाती है।
बिटिया हमारी
हो गई है बड़ी।
जीवन की पगडंडियों
से चलते हुए ,
आज चौराहे पर
खड़ी है ।
जिंदगी की सच्चाई --
चरितार्थ करती हुई,
कभी धूप में हम खड़े थे ,
आज वो खड़ी है .....
बिटिया हमारी
हो गई है बड़ी ,
हो गई है ----
बड़ी ...........
बेटियां देवी का रूप होती हैं,
उनका सम्मान करना चाहिए,
बेटियों के सम्मान के साथ ही
समाज एवं देश का सम्मान है।
