पता नहीं वो क्यों जुदा है
पता नहीं वो क्यों जुदा है
पता नहीं वो क्यों जुदा है, जो भी है लजवा है |
वैसे तो हम चाय पे चर्चा करते,
पर वो हर बात पर अपना नजरिया रखती |
हम चाहे कितने भी आगे चले जाये,
वो हमे फिर से अपने रास्ते लाती |
कहती जो भी में कह रही उसका सार है,
आज हमे इसी चीज का आभार है |
ना जाने वो किस चीज पे सहमति है,
सारी गलतियों को ठीक करके वो बोलती है|
वैसे तो दोस्त बहुत हुए होंगे हमारे,
लेकिन इस दोस्त का महत्व ही अलग है |
वैसे तो वो डाटती है समझाती है,
लेकिन वो डरी सहमी सामने आती है |
जब भी रात में हम मंदिरापान करते,
वो बैठ के साथ में चखना खाती |
जब भी उसे लगता अब तो ये ज्यादा हो गयी है,
वो हम सब को आनंदित माहौल में छोड़ कर जाती |
कभी लगता रात में हम लोगों ने गड़बड़ की,
फिर से वो आती और हमे अपनी गलतियों को समझाती |