जादू
जादू
सदियां बीत गई पर कोई समझ ना पाया
औरत इंसान है या कोई जादुई माया
इसका हर रूप है कुदरत का करिश्मा
अंग अंग में जादू है फैला
मां की ममता, बहन का दुलार
दोस्त का अपनापन पत्नी का प्यार
पल में प्रेयसी से अन्नपूर्णा बन जाए
पलक झपकते देवी से शक्ति का रूप बन जाए
कैसे एक ही शरीर में इतने रंग समाए
किसी को मालूम हो तो मुझे बतलाए?
नाजुक इतनी कि हाथ लगे तो कुम्लाह जाए
मजबूत इतनी पर्वत के सामने सीना तान खड़ी हो जाए
छोटे कीड़े से डर जाए
पर वक्त पड़ने पर परिवार की ढाल बन जाए
चाहे तो अपनी मीठी आवाज से वातावरण में रस घोल दे
वक्त पड़ने पर शेरनी की तरह दहाड़ संसार हिला दे
कड़कती धूप की आग बन दुश्मन को सुलगा दे
वक्त पड़ने पर चांदनी बन शीतलता बरसा दे
इसका कमाल देख दुनिया हैरान खड़ी
क्या है पास कोई जादू की छड़ी ?
जग का हर पुरुष है हैरान
दो ही हाथ इसके पर कैसे कर पाती इतने काम?
घर दफ्तर दोनो की जिम्मेदारी बखूबी निभाती
थकती नही बस चलती जाती
रोता बच्चा आवाज सुन चुप हो जाए
इसके बिना घर सुना सुना हो जाए
पुरुष जिसके बिना है अधूरा
संसार की यही तो है रचयिता
क्या है औरत की सच्चाई कोई जान ना पाया
ईश्वर का कैसा ये जादू है कोई समझ ना पाया
क्यों कुदरत ने इसे इतना जादुई बना दिया
एक ही इंसान में ममता भरा कोमल दिल
और चट्टान उठाने का बल दे दिया
है ये अपने क्षमता से अनजान
ठान ले तो जीत ले ये जहान
इतिहास है गवाह, मानी नही इसने किसी से हार
आत्मसम्मान के लिए अग्नि में कूद जाए
देश की रक्षा के लिए जान पर खेल जाए
परिवार की इज्जत के लिए खुद को दांव लगाए
खुद की ना सोच दूसरों का भला करती जाए
जादुई है स्पर्श इसका, जादुई इसका हस्ती
हर परिस्थिति को अपना, दुख में भी हंसती
कहां से सीखा इसने करना ये चमत्कार
कोई तो बता दे औरत इंसान है या कोई जादुई अवतार?