लचिलापन
लचिलापन
ना समझो उसे अबला, कमजोर और लाचार
उसमें है लचीलापन बेशुमार
गिर कर खुद उठ सकती है वो
हार को जीत में बदल सकती है वो
आंसुओ के सैलाब में डूबती नहीं
लोगों के तानों से डरती नहींं
अपनो के लिए खुद मिटाना आता उसे
झुक कर भी सिर उठा जीना आता उसे
पैरों के जख्मों ने करी ना, धीमी कभी उसकी चाल
लाख मुसीबते सहन,किया दुखों का दरिया पार
डरती नहीं चुनौतियों से, मानी ना कभी भी हार
जैसा मिले सांचा उसी में ढल जाती है
कभी मोम बन पिघलती है
कभी बन दिए की जोत उजाला करती है
रिश्ता को संजोना सीखा उसने
गलतियों को कर माफ आगे बढ़ना सीखा उसने
चाहे मारो शब्दो के बाण
चाहे घायल कर दो उसका आत्मसम्मान
दिल में छुपा दुखो के तूफान मुस्कराना सीखा उसने
संघर्षों की हर चट्टान से टकरा आगे बढ़ना सीखा उसने
हर हालात पर रखती है तेज नजर,
हिम्मत और हौसले से लेती है काम मगर।
हां, है ये मामूली कीड़े से डरने वाली वो नारी
वक्त आने पर बन जाती लक्ष्मीबाई,दुर्गा, काली
कभी बन जाती कांच सी नाजुक
कभी पहाड़ की तरह अकड़ जाती
उसकी लचीली शख्सियत का कमाल देखो
विकट परिस्थितियों की आग में तप
सोने की तरह कुंदन बन ज्यादा निखर जाती है वो।