जीवन से मृत्यु अच्छी
जीवन से मृत्यु अच्छी
अकेला ही आया था मैं
अकेला ही वापस जाऊंगा,
इस दुनिया की भीड़ से जो लिया
वो यही वापस कर जाऊंगा।।
मेरे अन्त समय में बस जीवन की
यादें मेरे साथ रह जायेगी,
मेरे अपनो के दिल में भी मेरे लिए
जगह कम हो जायेगी।।
मुझे पलंग से उतार कर
जमीन पर लेटा दिया जाएगा,
अगर मर गया पलंग पर तो
उसे भी फेंकना पड़ जाएगा।।
मेरे बहु बेटे बच्चे
सब यही उम्मीद लगाएंगे,
अब बूढ़ा जल्दी से निपट जाए
तो हम चैन से जी पाएंगे।।
मुझे फिर तुलसी दल पिलाया जायेगा,
और कोई आकर मेरे पास मुझे गीता जी सुनाएगा।।
कुछ देर में मेरी आत्मा शरीर को
त्याग कर परलोक चली जायेगी,
कभी तरसा एक रुमाल के लिए
अब मुझपर चद्दरों की बारिश कर दी जाएगी।।
ये लोग जो मेरे अपने होने का दिखावा करते हैं
मेरी मौत पर झूठे आंसू बहाएंगे,
जो सहारा ना बन सके मेरे बूढ़ापे का
वो आज मेरी अर्थी को कांधा देने आयेंगे।।
कभी तरसा हर चीज के लिए
अब मेरी हर पसंद का ख्याल रखा जाएगा,
कभी प्यार से किसी ने पानी नही पिलाया
अब बड़े स्नेह से मटके भर पानी पिलाया जायेगा।।
मुझे रूखी रोटी खिलाने वाले
मेरी चिता पर घी की नदियां बहाएंगे,
मेरी दो जून की रोटी पर लड़ने वाले मेरे अपने
शान शौकत से मेरी मौत का जीमन करवाएंगे।।
जीवन भर बात तक नहीं की किसी ने प्यार से,
अब वही लोग पूल बांधेंगे मेरी तारीफो से।।
इस दुनिया में जीने वाले से ज्यादा इज्जत मरने वाले की है,
लगता है यहां जीवन से तो मौत अच्छी है।।
