भगवान पर हँसेगी
भगवान पर हँसेगी
चूल्हा-चौका को पूरा कर
उसे तैयार होना होता है
कॉलेज जाने के लिए,
वो कोई चुनाव नहीं
करती है कपड़ों में
बस जो हाथ में आता है
उसी से अपना तन ढक लेती है।
उसे दिखना होता है साधारण
बिना किसी अंग-प्रदर्शन के
या यूँ कहे आखिर
ये ही उसकी पसंद है।
फिर चल देती है साथ
अपनी फैशनेबल
सहेली को लेकर
कॉलेज की तरफ।
रास्ते में नजर उसकी
उठती ही नहीं है
न जाने किस उधेड़बुन में
खोई रहती है वो।
कॉलेज पहुँचते ही
दिखना शुरू हो जाता है
लड़के-लड़कियों का मिलाप
उन सब से नजरें चुराकर
कक्षा में चली जाती है।
फिर कॉलेज से वापिस
घर आकर
मशगूल हो जाती है
घर के कामों में।
और जब सोने को
तैयार होती है रात में
सपनों की जगह
उसको सिखाई हुई
बातें जगह ले लेती है।
उसे बचपन से
सिखाया गया है
घरेलू लड़की बनना
अभी एक अच्छी बेटी
बाद में अच्छी बहू और माँ ।
जिसका सिर्फ घर के कामों
के अलावा कुछ लेना-देना नहीं
दुनिया के भूगोल से
क्योंकि उसकी दुनिया
वही है उसका घर।
उसे बचपन से दिया
जा रहा है प्रशिक्षण
घरेलू लड़की बनने की
हर कार्य में निपुण बनाकर।
और जब शादी कर
ससुराल में कदम रखती है
पहले ही दिन से उसकी
प्रशिक्षण की मजबूती
को देखा जाता है।
पति, सास और ननद
तराजू में हर गुण को
अपने प्रपंचो से तौलते हैं
बस एक गुण को तौलने
का सामर्थ्य उनमें नहीं होता
वो है उसकी सहनशक्ति।
मगर जब तक उनका
तौलने का काम होता है
तब तक देर हो चुकी होती है
लेकिन वो जीत चुकी होती है
तमगा घरेलू लड़की होने का।
अब शायद वो चैन से सो सकेगी
अपनी मर्जी के सपने देख सकेगी
अपने गले में लटके हुए तमगे को
दिखाकर अब वो भगवान पर हँसेगी।
