भौतिकता की दौड़
भौतिकता की दौड़
रातों का सफर मनुष्य
के लिए होता कष्टकारी
पर जीविका निर्वाह की
मजबूरी उस पे पड़े भारी
बड़े उद्यमों ने बदल दिए हैं
जीवन जीने के सब पैमाने
करोड़ों लोग अब निकलते
रात में ड्यूटी अपनी निभाने
यद्यपि हरेक काम के लिए
दिन को माना जाए अनुकूल
पर लक्षित कार्य संपादन को
रात्रि की ड्यूटी सबको कबूल
जीवन शैली में अनियमितता
लोगों को कर रही है तबाह
फिर भी कम होती नहीं दिखी
लोगों में मुद्रा अर्जन की चाह
भौतिकता की दौड़ में शामिल
देश की अधिसंख्य आबादी
अब भी देश के लोगों को नहीं
हासिल हुई है आर्थिक आजादी