भाषा
भाषा
संघर्षों की भाषा
भाषा की समझ
हमें तराशती है
जनांदोलनों /जनसंघर्षों से जोडती है
अभावों और अमानवीयता से
जूझती है
आत्मिक आवश्यकताओं के लिए
लड़ती है
कि आदमी को आदमी होने का सम्मान मिले
और असंख्य पीढ़ियों की अर्जित
सफलताओं पर/मुट्ठीभर लोगों का हक न हो
उसके लिए जरुरी है
आदमी के दुश्मन से निपटना
भेडिया, लोमड़ी, कुत्ता या जरख
यह मानव समाज,
उनसे निरापद होना चाहिए
दुधमुँहें कुत्ते
भौंक रहे हैं,
दुमुँहें कुत्ते
अखबार, आकाशवाणी और
लालकिले के बुर्ज से
टिड्डीदल से फैले
सांप से कुंडली मारे बैठे हैं
और सर्वहारा, नंगा
जनपथ पर ऊँचे हाथ किए
भाग रहा है
जिसके पीछे भागती हुई
जीपें, वायरलेस, सी.बी.आई
घेरा डालकर
अभद्रता के आरोप में
कर लेती है गिरफ्तार
और फिर आराम से, वे
एक मुँह से हड्डी,
और दूसरे से / कीमा खाने की प्रक्रिया में
जुट जाते हैं।