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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Classics Inspirational

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Classics Inspirational

भारतवर्ष की माटी

भारतवर्ष की माटी

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 “वंदन भारतवर्ष की माटी को”

वंदन इस पावन माटी को, 
जिसने जनमे वीर अनेक,
भारत मां की रक्षा हेतु
हँसते-हँसते जो मर मिटे,
इस माटी के खातिर
दिए प्राण की दी गई
आहूति अनेक।

जहां कण कण गूंजे गाथाएँ,
वेद, पुराण और इतिहास कहें,
जहाँ वीर शिवाजी की तलवार चलीं,
और तानाजी ने प्रण लिए।

झाँसी की रानी रण में गरजी,
शत्रु दलों को धूल चटाई,
प्राण तज दिए स्वाभिमान हेतु,
पर हार कभी न अपनी मानी।

ऐसी भूमि को शीश नवाएँ,
बलिदानों की जो गाथा गायें,
भारत मां की जय बोलें हम,
हर युग में हम दीप जलाएँ।


जहाँ भगत सिंह ने
हँसते-हँसते
भारत का परचम लहराया,
जहाँ आज़ाद ने गोली खाकर
मृत्यु को गले लगाया ।
जहाँ कारगिल के पर्वतों पर
लहू बहा था जवानों का,
जहाँ तिरंगा ओढ़े वीर सपूतों ने
दुश्मनों को ललकारा था।

ये भारत वर्ष की भूमि नहीं 
यह तो है हमारी भारत माता,
जिसकी गरीमा की रक्षा हेतु
क्षत्रियों ने जिसे अपने रक्तों से सींचा।

मत समझो इसे तुम बस
एक धरती का एक टुकड़ा ,
इसमें तो छुपा हैं अपनी
प्यारी मां का मुखड़ा,

हर आंधी से  लड़ जाएंगे ,
हर दुश्मनों को धूल चटाएंगे हम।
जब तलक जिंदा रहेंगे चमन में,
तिरंगा की शान को ना मिटने देंगे हम।

न हो कोई डर, न हो कोई ग़म,
वतन के लिए जीएंगे हम,
वतन के लिए ही मरेंगे।
मर मिट जाएंगे मगर ये वादा रहेगा अटल,
हर जन्म में भारत माँ को ही अपनी भेंट चढ़ाएंगे ।

चलोr फिर से प्रण करें हम
ना झुकेंगे, ना झुकने देंगे हम,
जब तक सांसों में बाकी है रवानी,
सीने में जलती रहेगी देशभक्ति का दम।

चलो फिर से उठे वो जुनून, वो आग,
देशभक्ति बने हर दिल का राग।
आज से, अभी से, इसी पल से हम,
देश की खातिर जिएंगे और मरेंगे हम।



जय हिन्द जय भारत।
मां भवानी की जय।।



स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
              विरमगांव, गुजरात।


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