भारत के अस्ताचल सूरज
भारत के अस्ताचल सूरज
सुबह सुबह कुछ बच्चे,
जो हैं उम्र के कच्चे,
ज्ञान तो है तो बहुत कम,
जीवन में उनके भरा है गम
छोड़कर पढाई लिखाई खेलकूद,
चुका रहे माँ-बाप के कर्ज़े का सूद,
करके इस उम्र में काम,
वो लोग हो रहे जनसँख्या में गुमनाम
ठुकरा कर किताबों-खिलौनों का साथ,
उनको थामना पड़ता होटल,उद्योगों का हाथ,
नहीं देती उन पर ध्यान सरकार,
और उनको नहीं मिलते उनके अधिकार
जब तक लागू हुआ सरकारी अधिनियम,
तब तक उन्होंने रख संयम,
उनको लगा अब उनके जीवन में होगा सुधार,
अब वो नहीं चुकाएंगे सूद और उधार
सरकार ने लगाया बाल मज़दूरी पर प्रतिबन्ध,
और किया शिक्षा का प्रबंध,
पर जनता ने सरकार की ऐसी बात मानी,
की सरकारी कर्मचारी ही बनाते उनको नौकर,नौकरानी
वैसे तो हर गरीब बच्चे का यहीं है जीवन,
कोई नहीं लाता उनके इस दुःख का संजीवन,
पर क्यों नहीं समझते इनके माँ-बाप,
की इनसे काम करवाकर वो लोग कर रहे पाप
जो है पढ़ने को बेताब,
दूर कर दी उनसे किताब,
उनके खिलौने दिए बेच,
और उनसे कसवा रहे पेंच
होता उनके बचपन का संहार,
और उनके खिलौने पर प्रहार,
वो लोग करते सुखों का शोषण,
और उनके दुखों का अवलोकन
कहते है बच्चे होते है देश का भविष्य,
पर क्यों नहीं समझते यह स्वार्थी मनुष्य,
जिनको चाहिए शिक्षा,खेलकूद और नेतृत्व की शक्ति,
उनसे यह लोग करवाते अपनी भक्ति
क्या यहीं बच्चे है देश का कल,
क्या कर पाएंगे यह देश की समस्याओं का हल,
जब अभी ही हो रहा इनका शोषण,
तो यह कैसे करेंगे प्रशासन
अगर देश का भविष्य करना है मज़बूत,
तो करो इस कलंक को नेस्त-नाबूत,
तभी होगा देश का विकास,
जब होगा बच्चों में अज्ञानता का निकास
जब मिलेगी उन्हें सब सुविधाएँ,
दूर होगी उनकी सब दुविधाएं,
तभी होगी उनकी उन्नति,
जिससे होगी देश की प्रगति