किताबी कीड़ा
किताबी कीड़ा
पढ़ ली है इतनी किताबें हमने,
कि लोग कहने लगे हमे किताबी कीड़ा,
ना कभी खेले ना कभी कूदे,
हाथ-पैर नहीं, दिमाग को देते रहे पीड़ा|
दुनियादारी सीखना का समय नहीं मिला,
समझदारी वाला फूल कभी नहीं खिला,
माँ-बाप की नज़र में बनने को कूल,
दुनिया की नज़र में बन गए हम फूल|
अभी समझ आ रहा है,
बाहर निकलना ज़रूरी था,
किताबों का हाथ थामने के साथ-साथ,
दोस्तों का साथ भी लाज़मी था|
सिर्फ किताबी ज्ञान जीवन आसान नहीं बनाता,
लोगों का समझना समझाना भी ज़रूरी है आना,
घर के अंदर घर के बाहर, करना है पूरा विकास,
तभी छू पायेगा हर बच्चा आकाश|