Sujata Kale

Tragedy

4.9  

Sujata Kale

Tragedy

बह गई तोड़ के बंधन

बह गई तोड़ के बंधन

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सालों से जो बाँधी हुई थी

दो पाटल के धारों में

आज बह गई तोड़ के बंधन

गाँवों में गलियारों में।


हाहाकार मचाया उसने

राहों में चौराहों में,

उद्दंड़ बनकर बह गई माता

गोद लिए खलियानों में।


हुआ अनर्थ, अनर्थ यह भारी

देख दृश्य यह आँखों ने।

आज बह गई तोड़ के बंधन

गाँवों में गलियारों में।


धूम मचाई घर नगर में उसने

संसार सभी के ध्वस्त किए।

कहीं गिरि को भेदती निकली

कहीं सागर से गले मिले।


जो जो मिला राह में उसको

सब आँचल में छुपा लिया।

चल अचल को ध्वंस करती

हिलोरे लेकर बहा दिया।


स्नेहाशीश का आँचल क्यों

फिर सरकाया है माँ ने,

आज बह गई तोड़ के बंधन

गाँवों में गलियारों में।


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