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Dr Priyank Prakhar

Abstract Tragedy

3.9  

Dr Priyank Prakhar

Abstract Tragedy

बेवफ़ा

बेवफ़ा

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44


समझा उनको दिलबर ये ख़ता थी हमारी,

बेवफ़ा से बेवजह उम्मीद ए वफ़ा थी हमारी,

दिल लगाया था उनसे बेकरारी थी हमारी,

तिनके भी हमारे और चिंगारी भी हमारी।


सुन रखे थे पहले भी हमने उनके किस्से,

नहीं पता था आएंगे वो हमारे भी हिस्से,

रोका हमको सबने बताया जिस जिस से,

सोचते हैं दिल लगा बैठे थे जाने किससे।


उनकी तो फ़ितरत ही थी भूल जाना,

फिर क्यों हम उनसे फ़रियाद करते हैं,

लेकर क्यों शिकायतों में नाम हर पल,

हम उनकी बेवफाई फ़िर याद करते हैं।


कभी यूं पड़े थे बेतरह मोहब्बत में उनकी,

सोचते थे ख़ुदग़र्ज़ दुनिया से अड़ जाएंगे,

लिखता हूं बेवफ़ाई की कहानी आज उनकी,

तो लगता है अल्फ़ाज भी हमसे लड़ जाएंगे।


दिल टूटता जिनका दरबदर इस कदर,

उनके लिए ही साकी मयखाने बनते हैं।

बेवफ़ाइयों से ही बनते हैं नये फसाने,

औ तभी तो नए दीवाने पुराने बनते हैं।



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