बेटियाँ …….
बेटियाँ …….
सुना था सब से …
ये कहते हुए ….
बेटियाँ होती बेटों से प्यारी …
हैरान हुई माँ की ममता न्यारी ..
बेटी है या बेटा ….
किस ने बनायी ये अनहोनी सी
अनकही सी बात …..अधूरी
जन्म जब देती जननी …
वो ही प्यार , दुलार …. देती उसे ..
अनदेखी ,अनजानी ….सी होती है
ममता की वो …..
एक नयी कहानी …..
फिर किस ने …
ये समझा और समझा दिया ….
इस दुनिया को
ये रीत …… ….ये बात अनजानी
वक़्त दिया आज ……@यशवी
समझने को ये बात ….अनजानी
शायद बेटी …. पैदा होते ही
ममता छलक जाती है ..
ये बातें …. जो सुनी थी …
बेटी तो धन पराया होती है ….
क़िस्मत से आयी है एक घर में
फिर जाना है ….. नए घर के आँगन में ….
बहुत बड़ा काम दिया उसे
जगत के पालनहार ने ……..
एक आँगन को महकाना है
एक को ….. नए फूलों से सजाना है
बस यही सोच ….. उसे परवान चढ़ाती है
जिस आँगन में खेली ….बड़ी हुई
बस उतनी सी ही ….. बड़ी हो के रह जाती है ….
छोड़ के जब …. ……माँ बाप का संसार
बनाने चली जाती है …. अपना घर परिवार …
वहीं की वहीं …. रह जाती है
हर प्यार, दुलार, ज़िद्द की वो छोटी सी दीवार …
जो छोड़ जाती है ….. इस पार
जब वापिस आती है
उसी छोटे से आँगन में ….,
फिर वो ही …..हकूमत चलाती है
ना खुद बड़ी ….. …हो पाती है
ना अपने हक़ को … ……….
कभी गँवाती है …
अपना प्यार,हक़ , मान …..
सम्मान उसी तरह से पाती है
शायद इसलिए ……..कहते है
बेटियाँ …. बेटों से भी प्यारी होती है।