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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

बेटी को कोख में मार रहे हो

बेटी को कोख में मार रहे हो

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आप बेटे को बहुत चाह रहे हो

बेटी को कोख में ही मार रहे हो

ये कैसा आप लोगो का ज़मीर है,

अपने ही दिल को बांट रहे हो

ज़रा लाज-शर्म तुम्हे आती नही,

मासूम फूल पे छुरियां चला रहे हो

एक फूल को खिलने से पहले ही,

उपवन से फ़िजूल में तोड़ रहे हो

ये रूढ़िवादिता न कब खत्म होगी,

बेटी को जन्म से पहले त्याग रहे हो

एकबार बेटियों का जन्म तो होने दो,

क्यों अपनी मां को ठोकर मार रहे हो

बेटियों को गर्भ में मारना छोड़ दो,

अपने पापों की लाठी अब तोड़ दो,

बेटियां है तो ये हंसती हुई प्रकृति है,

क्यों प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहे हो

गर इस दुनिया मे न बचेगी बेटियां, 

कैसे जिंदा होगी फिर नई पीढ़ियां

दीये से बाती निकाल तेल डाल रहे हो

बेटी को कोख में ही मार रहे हो!


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